रतनपुर में कुछ रसूखदार आदिवासियों का ज़मीन छीनने में।जुटे हुए हैं
रतनपुर में आदिवासी किसान की पुश्तैनी भूमि पर कब्ज़े का आरोप, तहसीलदार–राइस मिल गठजोड़ कटघरे में
अमित दुबे /वादिर खान की रिपोर्ट
रतनपुर/बिलासपुर।
छत्तीसगढ़ को आदिवासी अधिकारों और संवैधानिक संरक्षण का राज्य कहा जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत कई बार इन दावों पर भारी पड़ती नजर आती है। रतनपुर तहसील क्षेत्र से सामने आया एक मामला न सिर्फ प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि किस तरह एक आदिवासी किसान को अपनी ही पुश्तैनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
वार्ड क्रमांक 03, महामाया पारा निवासी आदिवासी किसान कैलाश बाबू नागरची ने तहसीलदार रतनपुर एवं स्थानीय राइस मिल संचालक पर गंभीर आरोप लगाते हुए जिला कलेक्टर, बिलासपुर को लिखित शिकायत सौंपी है। किसान का कहना है कि उनकी वर्षों पुरानी पुश्तैनी भूमि को हड़पने की नीयत से प्रशासनिक संरक्षण में बार-बार सीमांकन कराया जा रहा है और विरोध करने पर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है।
पुश्तैनी जमीन पर निगाह, सीमांकन बना हथियार
शिकायत के अनुसार कैलाश बाबू नागरची की भूमि खसरा नंबर 653/3, 653/5, 3376, 653/6, 653/50 एवं 653/48 में दर्ज है, जिस पर वे लंबे समय से काबिज हैं। आरोप है कि अनमोल राइस मिल, रतनपुर के संचालक अनिल दुग्गा द्वारा तहसीलदार की भूमिका के साथ मिलकर अवैध तरीके से इस भूमि को राइस मिल परिसर में शामिल करने की कोशिश की जा रही है।
पीड़ित किसान का कहना है कि सीमांकन की प्रक्रिया में नियमों की खुलकर अनदेखी की गई और उनकी जमीन के हिस्से को जानबूझकर मिल की भूमि में दर्शाया गया। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो उन्हें पुलिस बुलाने और “अंदर कर देने” जैसी धमकियाँ दी गईं।
दस्तावेज़ होने के बावजूद नहीं सुनी गई बात
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि किसान के पास अपनी भूमि से जुड़े सभी वैध राजस्व दस्तावेज मौजूद हैं, इसके बावजूद उसकी आपत्तियों को नजरअंदाज किया गया। कैलाश बाबू नागरची का आरोप है कि प्रभावशाली राइस मिल संचालक के दबाव में प्रशासनिक अमला निष्पक्ष भूमिका निभाने में विफल रहा।
किसान ने यह भी उल्लेख किया है कि संबंधित राइस मिल की भूमि 25–30 वर्ष पूर्व औद्योगिक प्रयोजन के लिए क्रय की गई थी। अब मिल के विस्तार की आड़ में आसपास के किसानों की निजी भूमि पर अनावश्यक और अवैध दावा किया जा रहा है, जो राजस्व नियमों और आदिवासी भूमि संरक्षण कानूनों के खिलाफ है।
कलेक्टर से न्याय की गुहार
पीड़ित किसान ने जिला कलेक्टर से मांग की है कि—
एक निष्पक्ष राजस्व टीम गठित कर दोनों पक्षों की भूमि का अलग-अलग सीमांकन कराया जाए,
राइस मिल की वास्तविक और वैध भूमि की गहन जांच की जाए,
तथा तहसीलदार और राइस मिल संचालक की भूमिका की जांच कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
आदिवासी जमीन की सुरक्षा पर फिर सवाल
यह मामला सिर्फ एक किसान की जमीन का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनशीलता का इम्तिहान है। सवाल यह है कि क्या आज भी आदिवासी किसान की पुश्तैनी जमीन सुरक्षित है, या फिर रसूख, पद और पैसे के आगे उसके संवैधानिक अधिकार दबा दिए जाएंगे?
रतनपुर का यह मामला अब जिला प्रशासन के लिए एक बड़ी कसौटी बन चुका है—जहां फैसला सिर्फ जमीन का नहीं, बल्कि न्याय और भरोसे का भी होना चाहिए।
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